तु फागुन नियरानी हो, कोई पिया से मिलावे ॥ टेक ॥ सोई तो सुदंर जाके पिया को ध्यान है, सोइ पिया के मन मानी।
खेलत फाग अगं नहिं मोड़े, सतगुरु से लिपटानी ॥ १ ॥
इक इक सखियाँ खेल घर पहुँची, इक इक कुल अरुझानी । इक इक नाम बिना बहकानी, हो रही ऐंचातानी ॥ २ ॥
पिय को रूप कहाँ लग बरनौं, रूपहि माहिं समानी । जौ रँगे रँगे सकल छबि छाके, तन- मन सभी भुलानी ॥ ३
यों मत जाने यहि रे फाग है, यह कछु अकथ कहानी । कहैं कबीर सुनो भाई साधो, यह गति बिरले जानी ॥ ४ ॥
- कबीर
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