ऋतु फागुन नियरानी हो

प्रभु की भक्ति और उनके नाम का भजन (जप) यही वस्तुत: सार है और सब बातें अपार दु:ख हैं। - कबीर

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ऋतु फागुन नियरानी हो (अन्य काव्य) 
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Author:कबीरदास

ऋतु फागुन नियरानी हो,
कोई पिया से मिलावे ।

सोई सुदंर जाकों पिया को ध्यान है,  
सोई पिया की मनमानी,

खेलत फाग अगं नहिं मोड़े,

सतगुरु से लिपटानी ।

इक इक सखियाँ खेल घर पहुँची,
इक इक कुल अरुझानी ।

इक इक नाम बिना बहकानी,
हो रही ऐंचातानी ।।

पिय को रूप कहाँ लगि बरनौं,
रूपहि माहिं समानी ।

जौ रँगे रँगे सकल छवि छाके,
तन- मन सबहि भुलानी।

यों मत जाने यहि रे फाग है,

यह कछु अकथ- कहानी ।

कहैं कबीर सुनो भाई साधो,

यह गति विरलै जानी ।।

             - कबीर

 

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