नीरु और नीमा का बालक कबीर को पाना | The Legend of Birth of Kabir | Kabeer
जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

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नीरु और नीमा का बालक कबीर को पाना | किंवंदती (किंवंदतियां) 
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Author:संकलन

नीरु जुलाहा काशी नगरी में रहता था। एक दिन नीरु अपना गवना लेने के लिए, ससुराल गया। नीरु अपनी पत्नी नीमा को लेकर आ रहा था। रास्ते में नीमा को प्यास लगी। वे लोग पानी पीने के लिए लहर तालाब पर एक अति सुंदर बालक को हाथ-पाँव हिलाते देखा। उसने बालक को अपनी गोद में उठा लिया और अपने पति नीरु के लौट आई। फिर सारा वृतांत कह सुनाया।

"नीरु नाम जुलाहा, गमन लिये घर जाय।
तासु नारि बढ श्रागिनी, जल में बालक पाय।''

नीरु जुलाहे ने बालक को देखकर पूछा कि यह किसका बालक है और वह इसे कहाँ से  लाई ? नीमा ने कहा कि इसे उसने तालाब में पाया है। नीरु ने कहा, इसे जहाँ से लायी है, वहीं रख आओ। मगर नीमा ने कहा कि इतने सुंदर बच्चे को मैं अपने पास रखुँगी। नीरु ने अपनी स्री से कहा कि इससे अपनी जग हँसाई होगी। लोग कहेंगे कि गवना में मैं अपनी स्री के साथ, बालक भी ले आया। नीरु को तत्कालीन समाज के लोगों का डर लग रहा था। उसने कहा :-

"नीरु देख रिसवाई, बालक देतू डार।
सब कुटम्ब हांसी करे, हांसी मारे परिवार।''

नीमा के न मानने पर नीरु-नीमा की बहुत कहा-सुनी हुई। नीमा अपनी जगह अडिग रही, इतने में बालक स्वयं ही बोल उठा,

"तब साहब हूँ कारिया, लेचल अपने धाम।
युक्ति संदेश सुनाई हौं, मैं आयो यही काम।
पूरब जनम तुम ब्राह्मन, सुरति बिसारी मौहि।
पिछली प्रीति के कारने, दरसन दीनो तोहि।'

अर्थात् हे नीमा ! मैं तुम्हारे पूर्व जन्म के प्रेम के कारण तुम्हारे पास आया हूँ। तुम मुझको मत फेंको और अपने घर ले चलो। यदि तुम मुझको अपने घर ले गयी, तो मैं तुमको आवागमन ( जन्म-मरण ) के झंझट से छुड़ा कर, मुक्त कर दूँगा। तुम्हारे सारे दुख व संताप मैं हर लूँगा।

बालक के इस प्रकार बोलने से, नीमा निर्भय हो गई और नीरु भी बालक को साथ ले चलने को सहमत हो गया -

"कर गहि बगि उठाइया, लीन्हों कंठ लगाया
नारि पुरुष दोउ हरषिया, रंक महा धन पाय।"

वे दोनों प्रसन्नतापूर्वक बालक को लेकर अपने घर चले गए।

[कहत कबीर संकलन]

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