भारत-दर्शन | Bharat-Darshan, Hindi literary magazine |
नीति के दोहे | कबीर |
Author : कबीरदास |
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं। जिन ढूँढा तिन पाइयॉं, गहरे पानी पैठ। जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ग्यान। सोना, सज्जन, साधुजन, टूटि जुरै सौ बार। पाहन पुजे तो हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़। बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि। अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। काल्ह करै सो आज कर, आज करै सो अब्ब। निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय। दोस पराए देखि करि, चला हसंत हसंत। कॉंकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय।
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