भारत-दर्शन | Bharat-Darshan, Hindi literary magazine |
मन लागो यार फकीरी में | सबद |
Author : कबीरदास |
मन लागो यार फकीरी में । जो सुख पावो राम भजन में, सो सुख नाही अमीरी में । प्रेम नगर में रहिनी हमारी, बलि बलि आई सबुरी में । आखिर यह तन ख़ाक मिलेगा, कहाँ फिरत मगरूरी में । - कबीर |